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दाता तेरे दान का, कोई ओर न छोर ! फिर भी डूबा लोभ में, पापी मन का चोर !
मालिक इतना दीजिये, जितनी है दरकार ! संचय के अपराध से, लीजे मुझे उबार !
....जय दीनदयाला 🙏🏼🌷🙏🏼🌷🙏🏼🌷🙏🏼