अनमोल

दाता तेरे दान का, कोई ओर न छोर !
फिर भी डूबा लोभ में, पापी मन का चोर !

मालिक इतना दीजिये, जितनी है दरकार !
संचय के अपराध से, लीजे मुझे उबार !

....जय दीनदयाला
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