भस्म चढ़ावत शंकर को,
अहि लोचन छार गिरी झरिके
ताकी फुंफकार लगी शशि को
अमृत बूंद गिरी झरिके
मृगराज सजीवन होई गयो
गौरां जो हंसी मुख यों करिके
शंकर संग होली
अर्थात
माता पार्वती एक बार भगवान शंकर के ललाट पर
भस्म लगा रही थीं। भस्म की छार शंकरजी के गले में
लिपटे नागराज की आंख में पड़ी। वे फुंफकारे।
फुंफकार शंकरजी के मस्तक पर विराजे चंद्रमा को
लगी। चंद्रमा से अमृत बूंदें गिरीं। अमृत गिरते ही वो
मृगराज सजीव होकर चल दिया, जिसकी छाल
शंकरजी लपेटे हुए थे। भगवान को इस तरह बिना
वस्त्र देख माता गौरी मुस्करा दीं।
(कवि माधव ने भगवान शंकर से कविता के माध्यम
से होली खेली)
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